पता नहीं मेरा मन हजारीबाग की गलियों में ही क्यों घूमता रहता है,इस शहर ने ऐसा क्या दिया, कि हरपल,हरक्षण,लिखते वक़्त बस यही मन करता है, कि हजारीबाग को अपने शब्दों से सजाऊँ, संवारूं और इसकी खूबसूरती में चार-चाँद लगाऊं !!!
लिखने को बहुत मन करता है, कि वहां ऐसा है, वैसा है, पर दो टूक कहूं तो हमें सिर्फ प्रकृति (Nature) का धन्यवाद देना चाहिए, कि उसने इसे इतना संभाले रखा, नहीं तो हमारी और से कोई कोर-कसर बाकि नहीं रही, इसे बर्बाद करने में...ये तो वहां की खूबी है कि वहां देखने को इतने सारे दृश्य हैं. हम मानवों ने वैसे इस ज़मीं को कोई बहुत देखने लायक नहीं छोड़ा है..... किसी चीज़ की सुन्दरता उसके प्राकृतिक रूप में है,न कि उसकी लीपापोती में... सच कहूं तो हजारीबाग में ऐसी कोई भी गली, मोहल्ला, नहीं होगा, जहाँ कूड़े-कचरे का ढेर न दिखे...... मैं ओकनी में रहती थी, और आप को ये जानकर बड़ी हैरानी होगी, कि मेरे घर वाली गली के ठीक पीछे भुंयिया टोली थी, जहाँ नीचे तबके के लोग कच्चे-पक्के मकानों में रहते थे, सूअर (pigs ) पालते थे, और अपना पेट भरने के लिए उसे ही मार कर खा जाते थे, वे सूअरों को मार कर उल्टा लटका के ले जाते थे, कितने cruel लोग थे वे लोग.बात करने का मतलब ये है, कि हर जगह गन्दगी...हमलोगों को असल में आजतक सिर्फ अपने घर ही साफ़ करने आए हैं, बाहर गन्दगी जमा करने से लेकर,बाहर तमाशा देखना तो हमारी आदत है...जब तक मैं हजारीबाग में थी, तब तक मैंने वहां पर नालियां तो खुली ही बहती देखीं थी...
हमलोग जब छोटे थे, तो कभी-कभी पोस्ट ऑफिस वाले रास्ते से, पैदल आ जाते थे... सेंट रोबर्ट्स गर्ल्स स्कूल वाला रास्ता मेरा बहुत ही पसंदीदा रास्ता था..... कौरव-पांडव वाले फूलों से वो रास्ता पटा रहता था, बेहद शांत इलाका था वो, वो रास्ता जैन पेट्रोल पम्प जाके ख़तम होता था, उस रास्ते के बीच में मेरी सहपाठी रितुपर्णा बनर्जी और उसकी बहन मालविका का घर आता था.
हजारीबाग में मेरी एक बहुत ख़ास जगह है,जिसका मेरे जीवन मैं बहुत महत्वपूर्ण स्थान है और वह है ब्रहम समाज... ये वो जगह है, जो इस शहर के बीचो-बीच स्थित है... सब्जी मंडी के ठीक सामने..वहां पर एक प्रसिद्ध दुकान भी हुआ करती थी, रोज़ टेलर्स की... चश्मा पहना हुआ वह व्यक्ति काफी सालों से वहां अपनी दुकान चलाता था, बड़ा ही विनम्र व्यक्ति हुआ करता था... ब्रह्म समाज संगीत सीखने वालों का 'मक्का' हुआ करता था..वहां हिन्दुस्तानी संगीत के अलावा, रविन्द्र संगीत भी सिखाया जाता था...मूलतः बंगाली समाज का वहां ज्यादा दबदबा था, पर मेरे गुरु जी ने ताउम्र हिन्दुस्तानी संगीत की अलख जगाये रखी. मेरे गुरु जी का नाम श्री शिव कुमार है, हो सकता है ये अब भूतकाल भी हो चुका हो, पर जो गुरु थे, वो हैं और रहेंगे भी... वे वहां पता नहीं कितने सालों से संगीत साधना करवाते थे...मैं जैसे ही हजारीबाग में आई थी, संगीत के प्रति मेरा रुझान देख कर मम्मी ने मेरा admission उस स्कूल में करवा दिया...८ साल से लेकर २२ वे वर्ष तक में उनसे संगीत सीखती रही... लम्बे-चौड़े व्यक्तित्व वाले वे इंसान हमेशा साधारण वेश-भूषा में ही दिखाई दिए.. कुर्ता -पायजामा में ही मैंने उन्हें देखा...
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ReplyDeletemere liye hazaribag means canary hill, school, DVc colony, the road from school to Canary hill area where my mama's house was and still is ..it was called Dipu gadha or smthng...
ReplyDeleteand the market where we shopped, a Pagoda was it? asian inn or aome restaurant near the court..they sold amazing mughlai parathas -- novelty clothes, bombay bakery, meena stores and another one of the same kind was it Ranjit Store?? and i can never forget the naan khatai sold at bombay Bakery...ab bhi if trust me they can sell the best nan khatais in the world!! have u tasted it ever? were these places around in your times??
Di, the Market was Sundari Ryne market i hope. Pagoda was a Ice Cream corner.In front of that shop was Guru Govind Singh road in which there were many cloth shops and resturants... About other shops, you mentioned i only remember Novelty, from where we used to purchase our woolens....I remember the Nan Khatai biscuits, but trust me do not know where it comes from.....
ReplyDeleteBTW thanks for reading my blogs, please put ur inputs about the place if u remember.......