हजारीबाग,दक्षिण छोटानागपुर का एक हिस्सा है,और आपको यहाँ संथाली बहुतायत में मिलेंगे...मध्यम कद के सांवले लोग,घुंघराले बालों के साथ अलग से पहचाने जा सकते हैं...इनके बारे में ज्यादा तो नहीं पता, पर ये काफी मेहनतकश इंसान होते हैं.मेरी पढाई जिस स्कूल से हुई, वहां पर भी ये आदिवासी/ संथाली लडकियां आराम से दिखाई देती थी.मेरी क्लास में एक लड़की थी अनीता केरकेट्टा, वो उन लड़कियों के बीच मेरी पसंदीदा थी... वह स्पोर्ट्स में भी काफी आगे थी और कद-काठी में भी काफी हट्टी-कट्टी थी, पर व्यवहार में वह उतनी ही सरल थी...उसकी बड़ी बहन भी हमारे स्कूल में हमसे किसी बड़ी क्लास में पढती थी...
हज़ारीबाग में यातायात का एक सबसे सुलभ साधन था, रिक्शा... सड़क के किसी भी किनारे, किसी भी चौक, गलियों, मोहल्लों में ये आसानी से मिल जाते थे. मैंने एक बार अन्नदा कॉलेज के पास ऑटो जाते हुए देखा था, लगा कि अब धीरे-धीरे रिक्शों के दिन लदेंगे, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. रिक्शा जिंदाबाद!!! बहुत से लोग साइकिल भी चलाते थे, पर मैं उन लोगों मैं नहीं थी... हिन्दू स्कूल के परिसर में हमने साइकिल चलाने की काफी कोशिश की, पर पूरी तरह से नाकामयाब रही, पर एक बात जरूर रही, कि हर बार मैंने अपने पैर और घुटने मैं खूब चोट पहुंचाई. हम तीनों भाई-बहनों ने साइकिल चलाने की प्रैक्टिस वहीँ से की, पर वे दोनों काफी आगे निकल गए, पर मैं वहीँ की वहीँ रह गयी. मेरी छोटी बहन गुडिया (शिल्पी) क्लास ५ से १२वीं क्लास तक साइकिल चलाती रही.मुझे इस बात का कहीं न कहीं मलाल रहा, कि वो ऐसा करके मम्मी-पापा के पैसे बचा रही है...आगे चलके उसने स्कूटर चलाना भी सीख लिया था... इस तरह वह हमेशा आगे कदम बढाती रही.. पर हमारे ज़माने में हजारीबाग के लोगों की मानसिकता काफी संकुचित थी, अगर किसी लड़की ने लीक से हटकर कोई काम कर लिया तो उसे आँखें फाड़- फाड़ के देखते थे. मेरी बहन को कई बार इस घटना से रूबरू होना पड़ता था..छोटे बस स्टैंड के पास कई बार गुंडे टाइप के लड़के साइकिल की हवा निकाल देते थे...और उसको काफी परेशानी होती थी.
आगे...
mujhe lagta hai ki kisi ladki ka cycle chalana hi Hazaribag mein badi baat thi scooter n all to fir kya hoga.. i can imagine. :D
ReplyDelete