Monday, September 20, 2010

हजारीबाग...

नानी के पास से मैं  सीधे अपनी मम्मी के वहां पहुंची. उस खूबसूरत जगह का नाम है हजारीबाग..... आज के झारखण्ड राज्य का एक खूबसूरत शहर....इसे एक ज़माने मैं बिहार का स्वित्ज़रलैंड भी कहा जाता था...छोटी-छोटी पहाड़ियों, झीलों, तालाबों से घिरा हुआ ये शहर आज भी बरबस याद आता है...हजारीबाग आने का भी एक यादगार वाकया है.. जुलाई महीने की करीब ३० तारीख होगी, मैं,मौसी, पापा भय्या और दादा जी हजारीबाग के लिए आ रहे थे... ट्रेन का नाम था मुरी एक्सप्रेस...साफ़ से याद नहीं कि ट्रेन को कोडरमा रुकना था या हजारीबाग रोड, पर ट्रेन स्टेशन से आगे जा चुकी थी और भय्या पापा को कहे जा रहे थे, कि स्टेशन निकल चुका है, पर पापा मानने को तैयार ही नहीं थे, करीब १-२ स्टेशन आगे जाके पता चला कि, हमारा स्टेशन कब के जा चुका है, अगर भय्या ने लगातार नहीं बोला होता, तो पता नहीं सीधे अंतिम स्टेशन पर ही हम लोग रुकते... :-)

भारी बारिश के बीच हमलोग रात मैं हजारीबाग पहुंचे, अपने घर जहाँ सब लोग रहते थे.बस स्टैंड से रिक्शे मैं घर आये थे और अन्नदा कॉलेज के आगे आके किसी को रिक्शे से उतरना पड़ा था, क्योंकि वहां चढ़ाई थी, और रिक्शावाला रिक्शा खींच (टान) नहीं पा रहा था...बस उस रात से मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग हो गया 'मेरा हजारीबाग'.. सुबह उठ के मम्मी को देखा तो वो कुछ बीमार से थी, उस समय इतना ही पता था, कि उनके पेट का ऑपरेशन हुआ था...मेरे पैदा होने के बाद से लेकर मेरी मां का तीन बार पेट का ऑपरेशन हुआ था, ..मैं भी एकदम नयी तकनीक से हुई थी, 'सिजेरियन'...
शुक्ल जी का मकान था वो नवाबगंज में...मकान तो ठीक ही था, पर आस-पास गोबर की बदबू...पता नहीं कितनी गाय-भैंस पाली थी उन्होंने...भाई-बहनों से नया-नया तारूफ हुआ ही था, की मेरी छोटी बहन 'गुडिया' कहने लगी.. दीदी, यहाँ ददन दीदी का घर है... मैं कई दिनों तक तक यही सोचती रही, की ददन क्या नाम होता है, जरूर उनका नाम 'गगन' होगा, क्योंकि मेरी बहन की जुबान उस समय साफ़ नहीं थी...काफी दिनों तक ददन को गगन बुलाने का सिलसिला चलता रहा...अब हजारीबाग मेरी साँसों मैं घुलने लगा था... सबसे सुन्दर वहां मुझे लगने लगा था, बूढ़वा महादेव का मंदिर..... उसके तालाब में कमल के फूल खिलते थे जो बड़े ही मनमोहक लगते थे, रोड पार करने के बाद था, मां का मंदिर...यहाँ से शुरू होता है तालाबों का सिलसिला...

मेरे पापा केंद्रीय भण्डारण निगम (Central Warehousing Corporation) में कार्यरत थे. उनका ऑफिस सिन्दूर में था. उनके ऑफिस जाते हुए रास्ते में झीलों से मिलना होता था. तीन झीलों का अद्भूत नज़ारा...आस-पास हरियाली ही हरियाली, फूल ही फूल...ऑफिस पहुँचने तक बेल के पेड़ों से मदमस्त और ताजगी भरी खुशबू दीवाना बना देती थी...ऑफिस के सामने से ही दिखता था,' कैनरी हिल'.  एक छोटी-सी पहाड़ी बरबस सबका ध्यान खींच लेती थी...इतना बड़ा कैम्पस था उस ऑफिस का, कि चलते-चलते पैर थक जाते थे... कहीं गेहूं, तो कहीं किताबों, कहीं चीनी के गोदाम हुआ करते थे...अगर आप चीनी के गोदामों में घुस गए तो समझो कि बेहोश ही हो जाओगे..इतनी बदबू/खुशबू? मुझे आज भी मीठा/ मिठाई इतनी पसंद नहीं है, शायद इन गोदामों की बदबू ही इसका एक ख़ास कारण रही होगी और भी पता नहीं वहां क्या-क्या स्टोर होता था?

पर जहाँ तक मुझे पता है छट तालाब के अलावा वहां ४-५ तालाब और थे, एक तो मेरी दोस्त के घर के पास ही था, नाम तो याद नहीं, पर वो जादोबाबू चौक के कहीं आगे रहती थी...

3 comments:

  1. हजारीबाग का वर्णन आपने बहुत ही सुन्दर और अच्छे शब्दों में किया हैं पढने वाला मानो अपने आप को वही महसूस करे.

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  2. mujhe bhi yaad hai canary hill,jheel, and the beauty of nature untouched by human hands!

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