Saturday, April 16, 2011

संघर्ष

संघर्ष 
२२.२.१९९९
सिर्फ एक मैं ही नहीं, करोड़ों तेरी संतान है,
आश्चर्य है बड़ा कि तू हम सबका एक भगवान है,
कैसे सृष्टि पालता है, कैसे हमको हालता है,
क्या यह बहुत आसान है, तू क्या बड़ा महान है?

तेरे बहुत धर्माधिकारी रोज तुझको पूजते हैं,
तेरी एवज मैं, वे लोगों से बहुत कुछ लूटते हैं,
जाने तू ये पाप है, फिर भी तू चुपचाप है,
क्या मैं समझूं, ये प्रदत्त जीवन मेरा भी एक अभिशाप है?

वाह रे वाह तेरी ये माया,तूने ही ब्रह्माण्ड रचाया
खेल कितना खेलता है, लोगों को तू पेलता है,
कितनों के जीवन लगाये पार तूने, सिखाया है पतवार खेने,
क्या तेरा ये न्याय है, जिसपे तू इठलाये है

किये मैंने भी उतने पाप, जितने तूने पुण्य करवाए हैं,
आज तेरी बाट जोहूँ, काहे तू मुस्काए हैं,
रोक ले मुझको पतन से, इतने कंटक पाए हैं,
आज फिर से स्वप्न देखूं, पर अँधेरा छाए है

है नहीं वो स्वर्ण, माणिक, जो तुझपे मैं न्योछार दूं,
है नहीं वो हार कंगन, जिसपे मैं उधार लूं,
मिट्टी का तन, मिट्टी का मन, आज तुझ पर वार दूं,
और चाहे कुछ अगर तो ले ये अर्पण सार दूं

पर मुझे भी आज अपनी थोड़ी समझ उधार दे,
मान मुझको गर न लायक, शेष भी उतार ले,
पर बता हे नाथ, इतने कांटें कब से कब तक,
जीवन में ये बिखराया हे,
कल से उस कितने कलों तक,
भाग्य ये मुरझाया हे
छीन ले मुझसे ये जीवन, जो बहुत दुखदायी हे,
मुझसे सुन्दर और निरर्थक जीवन तो चोपाया पाया है

है  नहीं मंजूर, मुझको कि मैं खूँटी से बंधी रहूँ,
अपनी पिछली करनी, तेरे प्रदत्त भविष्य पे में हंसती रहूँ,
गर कहीं तू आज है, इस लोक में तेरा राज है
आज मुझको इस बंधी खूँटी से तू निकाल दे
मेरे इस बोझिल तन का तू ये भाल ले,
और मेरा चिरप्रतीक्षित स्वप्न पूरा कर दिखा,
जा, मेरा सम्पूर्ण जीवन तुझपर समर्पित ये लिखा

आज मैं फिर एक गंभीर जीने को विवश हूँ,
क्या यही दुर्भाग्य मेरा, कि विवशता से मैं भरी हूँ
मेरे दाता, दीन में, आज मेरा कल्याण कर दे
मेरे इस उद्वेगित मन में फिर वही विश्राम भर दे,
जिसमे तेरा ही बसा हुआ , एक नाम हो बस,
मेरे इस चिरप्रतीक्षित स्वप्न को परिणाम हो बस,
मेरे पाप कर्मों से भरे मन को तू माफ़ कर दे,
आज अपने निश्छल मन से मेरा तू इन्साफ कर दे |

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