परोपकार: सबसे बड़ा धर्म
कुछ दिन पूर्व एक लघु कथा पढ़ी थी, जो मेरे दिमाग में बैठ गयी है, सोचती हूँ आप सब के साथ साझा करूं।
एक कॉफ़ी शॉप थी, वहां हर रोज दसियों लोग कॉफ़ी पीने आते थे, कोई अपना पूरा मग ख़तम कर के जाता तो कोई कॉफ़ी में नुक्स निकाल आधी पी के चला जाता। इसी तरह एक दिन एक व्यक्ति आया और एक कोने में जाकर बैठ गया। उसने 2 कप कॉफ़ी का आर्डर दिया। कॉफ़ी शॉप छोटी थी, तो मालिक स्वयं ही कॉफ़ी सर्व करता था। उसने अपने डेस्क से ही बैठे-बैठे पूछ लिया, भाईसाहब कहीं मैंने गलत तो नहीं सुना, आपने 2 कप कॉफ़ी का आर्डर दिया है। उसने कहा नहीं सर, आपने सही सुना है, मैंने 2 कप का ही आर्डर दिया है, पर मेरी एक रिक्वेस्ट है, एक कप कॉफ़ी हाथ में, और दूसरी एक पर्ची में दे दीजियेगा ....
यह बात सुनकर शॉप का मालिक मंद-मंद मुस्कराते हुए सोचने लगा, जरूर किसी सनकी ने आज जगह हथिया ली है, खैर मुझे तो पैसे मिल जायेंगे। कॉफ़ी आई और उसने चुस्की ले कर अपनी कॉफ़ी ख़तम की और जिस जगह वह बैठा था, वहां पर बची 1 कॉफ़ी की स्लिप लगा कर चला गया। सर्दी का मौसम था, कॉफ़ी पीने वालों की तादाद बढती जा रही थी। खैर, वह आदमी अगले दिन फिर कॉफ़ी की शॉप में आया, पर साथ में आज एक और साथी के साथ आया, इस बार उन्होंने 4 कॉफ़ी का आर्डर दिया और ये सुनिश्चित किया कि उसकी एक पुरानी स्लिप वहां दीवार पर लगी हुई है कि नहीं ... फिर उन दोनों मित्रों ने मिलकर अपनी 1-1 स्लिप फिर दीवार में चिपकाई और वहां से चल दिए। इस तरह ये सिलसिला चलता रहा, और कुल मिलाकर उस आदमी ने करीब 20-30 स्लिप दीवार में चिपका दी। शॉप में कप धोने वाला एक आदमी इस बात को हर रोज बड़ी बारीकी से देख रहा था, उसने एक दिन शॉप के किनारे रखे कूड़ेदान के पास बैठे आदमी को एक कप कॉफ़ी पिलाई और दीवार में लगी एक स्लिप निकाल के कूड़ेदान में डाल दी। वहां वो आदमी हर रोज एक के बदले 2 कप कॉफ़ी का आर्डर देता रहा, और यहाँ कप धोने वाला 1-1 स्लिप का सदुपयोग करता रहा। इस तरह उस शॉप में अब लोगों ने एक के बदले 2 कप कॉफ़ी का आर्डर देना शुरू कर दिया, और रास्ते में चलता कोई भी गरीब उस शॉप में घुस कर बेधड़क अपने लिए एक कॉफ़ी का आर्डर देता और एक स्लिप कूड़ेदान में फेंककर आगे निकल जाता ......
कहानी का सार है परोपकार करना जीवन का सर्वोत्तम धर्म है, जिसे छिछोरी भाषा में कह सकते हैं, नेकी कर दरिया में डाल। होने को ये उक्ति यहाँ फिट नहीं बैठती पर कुछ लोग इस तरह की भाषा ज्यादा अच्छे से समझते हैं। वह आदमी 2 कॉफ़ी की कीमत अफोर्ड कर सकता था, तो उसने किया। अपने साथ उसने एक अनजान व्यक्ति को ठण्ड के मौसम में थोड़ी राहत दी। वह आदमी मुझे एक पेड़ की तरह लगने लगा है, जो सर्दी, गर्मी, बरसात में खुद कष्ट सहता रहता है, और फल देता रहता है। स्लिप निकाल के कॉफ़ी पीने वाला आदमी उस फल का अधिकारी है। अंग्रेजी में Cecil .F. Alexandar ने एक कविता लिखी है, All things bright and beautiful..... इस कविता की 1 पंक्ति मुझे बरबस याद आती है ...
The rich man in his castle,
The poor man at his gate,
He made them, high or lowly,
And ordered their estate.
मेरी मम्मी कहतीं हैं कि आदमी के जीवन मैं 50 % हाथ उसकी मेहनत और 50% हाथ किस्मत का होता है और यह सही भी है। यह बात सच है कि आदमी अपने कर्मो से भी राज और रंक बनता है, पर ऊपर वाले की भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है, हर आदमी की रचना उसी के हाथ में निहित है। जब हम ऊपर से ही निर्धारित होकर आये हुए हैं, तो धरती में अपनी भूमिका को नकारना नहीं चाहिये। अगर हम किसी निर्धन के जीवन में किसी भी पॉजिटिव तरीके से धन आने का कारण बन सकते हैं, तो वो कारण बनने से चूकना नहीं चाहिए। क्योंकि ना जाने किस भेष में बाबा, छुपा हुआ है भगवान ... हो सकता है हम उस गरीब के जीवन में भगवान की तरह हों, पर साथ में हमें भी ये देखना चाहिए कि हर गरीब के भेष में भगवान छिपा हो सकता है।
इसलिए कोई भी काम करने से पहले ये जरूर देखना चाहिए कि किसी भी कार्य के जरिये परोपकार किया जा सकता है, उसके लिए धनराशि ही नहीं मन में श्रद्धा और त्याग का होना भी जरूरी है .....
कुछ दिन पूर्व एक लघु कथा पढ़ी थी, जो मेरे दिमाग में बैठ गयी है, सोचती हूँ आप सब के साथ साझा करूं।
एक कॉफ़ी शॉप थी, वहां हर रोज दसियों लोग कॉफ़ी पीने आते थे, कोई अपना पूरा मग ख़तम कर के जाता तो कोई कॉफ़ी में नुक्स निकाल आधी पी के चला जाता। इसी तरह एक दिन एक व्यक्ति आया और एक कोने में जाकर बैठ गया। उसने 2 कप कॉफ़ी का आर्डर दिया। कॉफ़ी शॉप छोटी थी, तो मालिक स्वयं ही कॉफ़ी सर्व करता था। उसने अपने डेस्क से ही बैठे-बैठे पूछ लिया, भाईसाहब कहीं मैंने गलत तो नहीं सुना, आपने 2 कप कॉफ़ी का आर्डर दिया है। उसने कहा नहीं सर, आपने सही सुना है, मैंने 2 कप का ही आर्डर दिया है, पर मेरी एक रिक्वेस्ट है, एक कप कॉफ़ी हाथ में, और दूसरी एक पर्ची में दे दीजियेगा ....
यह बात सुनकर शॉप का मालिक मंद-मंद मुस्कराते हुए सोचने लगा, जरूर किसी सनकी ने आज जगह हथिया ली है, खैर मुझे तो पैसे मिल जायेंगे। कॉफ़ी आई और उसने चुस्की ले कर अपनी कॉफ़ी ख़तम की और जिस जगह वह बैठा था, वहां पर बची 1 कॉफ़ी की स्लिप लगा कर चला गया। सर्दी का मौसम था, कॉफ़ी पीने वालों की तादाद बढती जा रही थी। खैर, वह आदमी अगले दिन फिर कॉफ़ी की शॉप में आया, पर साथ में आज एक और साथी के साथ आया, इस बार उन्होंने 4 कॉफ़ी का आर्डर दिया और ये सुनिश्चित किया कि उसकी एक पुरानी स्लिप वहां दीवार पर लगी हुई है कि नहीं ... फिर उन दोनों मित्रों ने मिलकर अपनी 1-1 स्लिप फिर दीवार में चिपकाई और वहां से चल दिए। इस तरह ये सिलसिला चलता रहा, और कुल मिलाकर उस आदमी ने करीब 20-30 स्लिप दीवार में चिपका दी। शॉप में कप धोने वाला एक आदमी इस बात को हर रोज बड़ी बारीकी से देख रहा था, उसने एक दिन शॉप के किनारे रखे कूड़ेदान के पास बैठे आदमी को एक कप कॉफ़ी पिलाई और दीवार में लगी एक स्लिप निकाल के कूड़ेदान में डाल दी। वहां वो आदमी हर रोज एक के बदले 2 कप कॉफ़ी का आर्डर देता रहा, और यहाँ कप धोने वाला 1-1 स्लिप का सदुपयोग करता रहा। इस तरह उस शॉप में अब लोगों ने एक के बदले 2 कप कॉफ़ी का आर्डर देना शुरू कर दिया, और रास्ते में चलता कोई भी गरीब उस शॉप में घुस कर बेधड़क अपने लिए एक कॉफ़ी का आर्डर देता और एक स्लिप कूड़ेदान में फेंककर आगे निकल जाता ......
कहानी का सार है परोपकार करना जीवन का सर्वोत्तम धर्म है, जिसे छिछोरी भाषा में कह सकते हैं, नेकी कर दरिया में डाल। होने को ये उक्ति यहाँ फिट नहीं बैठती पर कुछ लोग इस तरह की भाषा ज्यादा अच्छे से समझते हैं। वह आदमी 2 कॉफ़ी की कीमत अफोर्ड कर सकता था, तो उसने किया। अपने साथ उसने एक अनजान व्यक्ति को ठण्ड के मौसम में थोड़ी राहत दी। वह आदमी मुझे एक पेड़ की तरह लगने लगा है, जो सर्दी, गर्मी, बरसात में खुद कष्ट सहता रहता है, और फल देता रहता है। स्लिप निकाल के कॉफ़ी पीने वाला आदमी उस फल का अधिकारी है। अंग्रेजी में Cecil .F. Alexandar ने एक कविता लिखी है, All things bright and beautiful..... इस कविता की 1 पंक्ति मुझे बरबस याद आती है ...
The rich man in his castle,
The poor man at his gate,
He made them, high or lowly,
And ordered their estate.
मेरी मम्मी कहतीं हैं कि आदमी के जीवन मैं 50 % हाथ उसकी मेहनत और 50% हाथ किस्मत का होता है और यह सही भी है। यह बात सच है कि आदमी अपने कर्मो से भी राज और रंक बनता है, पर ऊपर वाले की भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है, हर आदमी की रचना उसी के हाथ में निहित है। जब हम ऊपर से ही निर्धारित होकर आये हुए हैं, तो धरती में अपनी भूमिका को नकारना नहीं चाहिये। अगर हम किसी निर्धन के जीवन में किसी भी पॉजिटिव तरीके से धन आने का कारण बन सकते हैं, तो वो कारण बनने से चूकना नहीं चाहिए। क्योंकि ना जाने किस भेष में बाबा, छुपा हुआ है भगवान ... हो सकता है हम उस गरीब के जीवन में भगवान की तरह हों, पर साथ में हमें भी ये देखना चाहिए कि हर गरीब के भेष में भगवान छिपा हो सकता है।
इसलिए कोई भी काम करने से पहले ये जरूर देखना चाहिए कि किसी भी कार्य के जरिये परोपकार किया जा सकता है, उसके लिए धनराशि ही नहीं मन में श्रद्धा और त्याग का होना भी जरूरी है .....
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