Friday, July 5, 2013

खूबसूरत कार्मेल पर लट्टू जेवियर्स

खूबसूरत कार्मेल  पर लट्टू जेवियर्स 
यह आलेख पढ़कर आप इसे कदापि अन्यथा नहीं लें, कि मैं किसी स्कूल के बारे में कुछ अनर्गल लिखने का प्रयास कर रही हूँ, पर यही सत्य है कि  दो प्रतिस्पर्द्धी स्कूलों के बच्चे पीढ़ियों से लव-हेट (Love-Hate) वाला संबंध रखतें है।
ज्यादा तो गहराई से मुझे नहीं मालूम, पर यौवन की दहलीज़ में कदम रखते ही आइना सबसे बड़ा सहारा हो जाता है नव युवाओं का। बाल संवारने से लेकर लटों को दाँये-बांयें करने में ही बड़ा वक़्त कट जाता है, रहा-सहा थोडा वक़्त किताबों के काले अक्षरों को समेटने में लग जाता है। वैसे मैं अपने को इससे पहले ही अलग कर लूं, क्योंकि ऐसा मेरे साथ एकदम भी नहीं हुआ, क्योंकि मम्मी ने स्कूल तक तो मुझे हमेशा ही बॉब-कट रखा। पर कॉलेज जाने के बाद जब बाल थोड़े बढे, तो एक बित्ती गुथ सँभालने के लिए शीशे के सामने खड़े होना बड़ा सुहाता था। पापा मजाक करते थे, कि काला पर्दा डाल दो शीशे में, नहीं तो एक दिन शीशा थक के खुद ही टूट जायेगा।

अलबत्ता, कार्मेल की हसीन लड़कियों के मिज़ाज को समझने के लिए शहर में दो ही हस्तियाँ थीं, या तो उन लड़कियों के माँ-बाप, या उनके आगे-पीछे डोलते हुए ये गबरू जवान। अच्छा, मैं थोड़ी नासमझ बचपन से ही थी, लडकियाँ गुट बना के लड़कों के बारे में गुफ्तगू करती थीं, और मुझे पास देखकर बात पलट देती थीं। इस बात में कोई लाग-लगाव नहीं है और यह बात सोलह आने सच है। क्लास 6th से तो मैं यह देखती आ रही थी। क्लास 6th में हमारी क्लास में एक बेहद ही हसीन लड़की थी, जो बाद में किसी दूसरे स्कूल चले गयी थी, वहीँ से मैंने अपने साथ ये वाक्या देखा। इन लोगों की कानाफूसी छुट्टी टाइम भी बहुत दिखती थी, चाट वाले भय्या के पास, या नीचे बैठ कर इमली बेचने वाली दीदी से पास ये लोग दिख ही जाते थे।रिक्शे में जाती किसी खूबसूरतो के आस-पास चँवर झूलाने वाले-से ये अल्हड, अमूमन मुझे तो दिख ही जाते थे। ये उनके साथ ऐसे होते थे जैसे  कि या तो रिक्शा चलने वाला रिक्शा चलाते-चलाते अगर थक जाये तो वे ही रिक्शा चला कर उन्हें घर पहुंचा देंगे, या हुड में बैठी लड़कियों के आस-पास ये किसी बॉडीगार्ड से कम नहीं लगते थे। थे तो सभी छोटे पर साइकिल की सवारी इनकी बड़ी मजेदार होती थी।
दो तरह की लडकियां जेवियर्स से जुडी थीं, एक तो जो पढने लिखने में बहुत ही तेज होती थी और आये दिन किसी न किसी डिबेट कम्पटीशन या एक्जीबिशन में वहां जाती रहती थीं, और दूसरी वो जो सुन्दर दिखने वाली थीं और वहां के नौ-निहाल इनपर लट्टू थे. जब तक मैं क्लास 9th में आयी तब तक इनका झुण्ड ब्रेक टाइम में स्कूल के अन्दर भी पधारने लगा था। उस समय थोडा सिनियरटी का एहसास हो चुका था। ये वाक़या मेरे साथ हो चुका है, इसलिये बताने में कोई झिझक भी नहीं है। एक बार हमारी एक जूनियर से मिलने एक भाईसाहब स्कूल में आ धमके, थोड़ी देर तक मैं देखती रही, पर एक समय के बाद मेरे से रहा न गया। मैंने आव न देखा ताव, उस लड़की को खूब डांटा और साथ में उस लड़के को भी खूब खरी-खोटी सुनाई। बीच में टीचर भी आईं, उन्होंने भी खूब फटकार लगाई उस लड़के को और अंततः वह साहबजादे वहां से निकल लिए। बड़ा लीडरशिप का एहसास हुआ था उस दिन, टिफ़िन खत्म और मेरी क्लास में कुछ बच्चों को यह पता लग गया कि मैंने ऐसा कारनामा किया है आज, तो सबने बड़ी चुटकियाँ लीं। पर एक सहपाठी थी, जिसने मुझे समझाया कि आज का दिन मेरे पर काफी भारी पड़ने वाला है, सो घर संभल के जाना। भाई  साहब, मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम. पता चले कि वो मियाँ मेरे ही पीछे पड़ जायें और परेशान करने लगे। भगवान का नाम लेके घर की और निकले। वो लड़का दिखा भी था, हमारे रिक्शे के आस-पास और मैं वहां चूहे की तरह दुबकी-सी बैठी थी। घर के पास आने से पहले ही मैं उतर ली और रास्ता बदल कर पैदल-पैदल घर पहुँच गयी।
उस दिन से समझ आया की रोमियो-जूलिएट की कहानी में बिना बात के विलेन न बनना ही अच्छा।

   बात बड़ी नाजुक है और खुलेआम कहने में मुझे कोई गुरेज़ भी नहीं है कि छोटे शहरों में उस समय लड़के-लड़कियों को बात करते देख लेने पर काफी बुरा माना जाता था। कई अटकलें लगायी जाती थी और कई फ़साने भी बनाये जाते थे। छोटी उम्र ( teen age) में लगाव, आकर्षण होना स्वाभाविक है, वैसे इस बात पर कोई ठप्पा नहीं लगाया जा सकता पर आकर्षण, सराहना और सुन्दरता किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती, वो तो बस नैसर्गिक है, अपने आप हो जाती है। बड़े शहर में रहने के बाद मुझे को-एड (co-ed) के मायने समझ आये। बचपन से ही कोई पर्दा नहीं, सब समान, एक जैसे. लड़का-लड़की वाला कोई एहसास नहीं। मजेदार बात यह थी, शहर से करीब 15 किमी दूर मेरु के बीएसएफ स्कूल को छोड़ कर हज़ारीबाग में कोई  co-ed स्कूल था भी नहीं। कार्मेल की लडकियां खालिस कॉन्वेंट वाली होती थीं और जेवियर्स के लड़के भी कोई कम नहीं थे। वैसा ही रुतबा था उनका भी। पर मजे लेने वाले तो सिस्टर्स और फादर्स पर भी जुमले छोड़ ही देते थे।
आज अगर फिर से रिक्शे पे बैठ के निकलूँ अपनी गली  से और ऐसे रोमियो-जूलिएट फिर से दिख जायें तो कसम ख़ुदा की इंस्टेंट आशीर्वाद ले लूं, "पुनः युवती भवः"।

गुजरा हुआ ज़माना, आता नहीं दोबारा, हाफ़िज़ खुद तुम्हारा।
http://youtu.be/qwY_WjMqUyE

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