Tuesday, January 17, 2012

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एक विश्रांति थी, आज वह भी ख़त्म हुई,
न जाने आज इन ऊंगलियों मैं कैसी हलचल हुई,
इन नसों में आज कैसी धार बह चली है,
आश्चर्य, धीरे-धीरे न बहकर लगातार बह चली है|

मन मेरे अब आज अपना मौन व्रत तो तोड़ो,
साथ अपने इस त्याज्य सखा को फिर से जोड़ो,
जिसने वर्षों से तुम्हे अब तक संभाले रखा है,
अबतक तुम्हे इस संसार में जकड़ कर रखा है |

उद्गम से निकलकर, अलग होने की पीड़ा मैं भी जानती हूँ,
संभवतः हर बार तुम्हारे साथ होनेवाला यह कर्म मानती हूँ,
पर काल की गति कभी रुकती नहीं,थमकर कभी सोती नहीं,
उठ, आज स्वयं इस दर्द के पारावार से तू मुक्ति पा ले,
ऐसा जीवन छोड़ दे, जिसमे तूने दुखों को रखा संभाले |

महाशोक के क्रूर शोक से, उज्जवल किरण वह फिर तो आएगी,
इस रुके निर्झर से, फिर वह बहकर जाएगी,
मत कर संताप, छोड़ पश्चाताप, मन को अपने ढाढस बंधा,
वह किरण अब दूर जाकर भी, पुनः वही उजाला लाएगी |

1 comment:

  1. Nice, positive thoughts. Liked to read it. We have to take care of our own self.

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