कार्मेल स्कूल
कभी-न-कभी हम सभी पुराने दिनों और यादों में लौट जाना चाहते हैं और आज फिर पुराने पन्ने पलटने का मन कर रहा है. पुराना स्कूल मायके की तरह होता है, जहाँ से हम हमेशा जुड़े होतें हैं, चाहे वो पुराने शिक्षक/शिक्षिकाएं हों या पुराने दोस्त. जैसे मायका छूट जाने के बाद वहां की महत्ता ज्यादा पता लगती है, उससे जुड़ाव और ज्यादा हो जाता है, मेरा वही हाल मेरे स्कूल के साथ है. क्लास 6 में लगभग 100 बच्चों की एक क्लास थी, जिसमे क्लास 5 a , b और c सेक्शन के बच्चों के साथ बाहर से आये हुए बच्चों का जमघट लग गया था. हमारी क्लास टीचर थीं, मिस पूर्णिमा सिंह, जो हमारी पड़ोसी भी थी. मैं नवाबगंज में श्री रामनाथ गिरी जी के मकान में रहती थी, जो अनंदा स्कूल में टीचर थे. मिस पूर्णिमा, मिस लिली (संपूर्णा सिकदर की मम्मी) और मिस शिखा रानी सेन आस-पास ही रहते थे. मिस पूर्णिमा और मिस लिली का घर सटा हुआ था, और मिस शिखा का घर रोड पार करके आता था. बहरहाल 100 या 101 बच्चों के क्लास में पहला रोल नंबर था अल्पना कुमारी का और अंतिम था ज़ेबा कौशर का. मेरा रोल नंबर 76 था और मेरे आगे थी, शेफाली सत्यार्थी. अब्सेंट-प्रेजेंट कहते-कहते ही 15 मिनट गुजर जाते थे. उस समय टीचर हर हफ्ते हमारी सीट बदल देती थी और मेरे साथ बैठती थी अंजना अग्रवाल या जया ज्योति. जया की हंसी मुझे बहुत पसंद थी, हलकी और खनक से भरी हुई.
मैं और मेरी बहिन किशोरी के रिक्शे में आते-जाते थे, पर शनिवार को सिर्फ हाई-स्कूल चलता था, तो मुझे अकेले ही जाना पड़ता था. एक दिन मिस पूर्णिमा ने मुझे अकेले जाते हुए देख लिया तो मुझे अपने साथ ले लिया. उस दिन से शनिवार को हमेशा मैं उन्हीं के साथ स्कूल जाने लग गयी. कभी-कभी उनकी बहिन मिस रागिनी भी साथ होती थी. मिस पूर्णिमा के साथ जाने के कारण मैं खुद को उनके करीब पाने लग गयी थी. वो मैथ्स की शिक्षिका थीं और मुझे सिर्फ अर्थमेटिक ही पसंद था. सबसे मजेदार क्लास थी, जिओग्राफी की. मिस सरोज पॉल थीं टीचर. मुझे पता है आप सब भी मुस्कुरा रहे होंगे नाम पढ़ के. एक ही क्लास में पता नहीं कितने चैप्टर ख़तम कर देती थीं. मुझे याद है जिओग्राफी की कॉपी, एक तरफ लाइन वाली और दूसरी तरफ सफ़ेद पन्ने. हर दिन हर कंट्री का मेप बनाना होता था, होमेवोर्क की कॉपी चेक करने के वक़्त एक- एक 'रो' की बारी आती थी. मैं भी कभी-कभी उस रो मैं बैठ जाती थी, जहाँ की कॉपी चेक हो चुकी हो.कभी वो क्लास में पूछती थी, कौन-कौन ट्रेन में बैठा है, और कौन प्लेन में. सभी बहुत मजा करते थे उस क्लास में. क्लास 6 से 7th में जाते हुए सब के दिल बैठे हुए थे क्योंकि अब सेक्शन बंटने थे और सब अलग-अलग होने वाले थे. 7 में मुझे मिली A सेक्शन और फिर 10th तक A ही मेरी क्लास भी रही. 7-10th तक लगभग सारे सहपाठी भी वही रहे.
क्लास 7th में हमारी क्लास टीचर थीं मिस माया. बड़ा ही मनहूसियत भरा हुआ वो कमरा था, अँधेरा भरा और काला. मेन हॉल के पास ही था वो. मिस माया हमें सिविक्स पढ़ाती थीं. उस क्लास के बारे में इतना तो याद नहीं मुझे, पर ये जरूर याद है कि मोरल साइंस की क्लास में दोनों सेक्शन साथ बैठते थे, जैसे कोई बिछुड़ा हुआ दोस्त मिल गया हो. जिसकी जो बेस्ट फ्रेंड वो उसी के साथ बैठ जाती थी और ऐसा लाज़मी भी था.
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