माउन्ट कार्मेल स्कूल, हजारीबाग
अपने जीवन का एक बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा मैंने इस स्कूल में बिताया है, सो आप सब लोगों के साथ इसे भी बांटने की तीव्र इच्छा है.
मैंने ३१.०७.१९८६ में उस स्कूल में दाखिला लिया था, और उसी दिन से हो गयी थी मैं इसी स्कूल की.पहला दिन स्कूल का, और मैं किसी को जानती नहीं थी, मेरी क्लास थी 5thC. 'सी' सेक्शन इसलिए क्योंकि वह 'हिंदी'
बोलने और पढने वाले बच्चों की क्लास थी. कार्मेल में आने से पहले मैं सरस्वती शिशु मंदिर,अल्मोड़ा में पढ़ती थी, एक पूर्णरूपेण हिंदी स्कूल, जहाँ के आचार-विचार में संपूर्ण भारतीयता थी. मेरी क्लास में नूर मरियम लकड़ा, अंशु, किरण, पिंकी,सलोनी नाम की अन्य लडकियां भी थीं. मेरे ख्याल से उन सब में डील-डौल के हिसाब से मैं थोड़ी छोटी लगती थी. और भी कई लडकियां भी थीं, जिन्हें दिल्ली के स्कूल सिस्टम के हिसाब से आज EWS कैटेगरी में रखा जा सकता है,क्योंकि ऐसा लगता था कि वे समाज के काफी निचले स्तर से आती थीं. हमारी स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर ऐथेल थीं. स्कूल का पहला दिन था और लंच टाइम हो चुका था, और भूख भी बहुत लग रही थी, स्कूल के उस पहले दिन मैंने और मेरी बहन ने एक साथ लंच किया. मेरी दोस्तों के बीच धीरे-धीरे मेरी दोस्ती बढ़ने लग गयी थी, उन सब लड़कियों मैं मुझे नूर बहुत पसंद थी, क्योंकि वो बहुत अच्छा गाती थी.मैं एक संस्कृत प्रधान स्कूल से एक कॉन्वेंट में आई थी, तो वहां के रहन-सहन, डिसीप्लिन को समझने में थोडा टाइम लग गया, पर सबसे अच्छी बात ये थी, कि स्कूल में घुसते के साथ ही 'चैपेल' के बाहर हम अपना बैग रखते थे और फिर अन्दर जाकर cross बनाते थे, और दिवार के किनारे लगी कटोरी से 'ग्रेप जूस'पीते थे, जिसे वहां 'सेक्रेड वाटर' भी कहते थे.अब मेरे अन्दर carmelite बनने के सारे गुण धीरे-धीरे आने लग गए थे. Jesus को देखना अच्छा लगने लगा था, क्योंकि स्कूल आने से पहले मैंने उन्हें कभी इतने करीब से देखा नहीं था. एक टीचर थीं मिस रागिनी, जो मुझे बहुत मानती थी, क्योंकि मेरी संस्कृत उन्हें बहुत पसंद थी और वो क्लास के बीच में खड़ा कर मुझसे कभी भी कुछ भी पूछ लेती थी. सारी टीचर्स बहुत अच्छी थीं, पर मिस अन्नाकुत्टी के नाम से मेरे पसीने आने लगते थे.एक तो वो कुछ भी बोलती थीं और वो कुछ दक्षिण भारतीय स्टाइल में बोलती थीं या तो इंग्लिश में बोलती थी, जो मेरे पल्ले बहुत कम पड़ती थी. एक बार की बात है,टिफिन के बाद ही SUPW की क्लास थी और मेरे पास सुई-धागा नहीं था, मुझे ये लगा कि अब क्या करूँ, पनिशमेंट खाने से अच्छा ये लगा कि घर जा कर सुई-धागा ले आऊँ, और मैं रिक्शे में घर जा के सब कुछ ले आई , पर घर जा के तो इस बात का मजाक तो इतना बनाया गया कि ये वाक्या परिवार के लोगों को भुलाये नहीं भूलता.
अब धीरे-धीरे सेशन ख़तम होने का टाइम आया और रिजल्ट वाला दिन भी आ गया. स्कूल के पीछे डायनिंग हॉल था, जहाँ रिजल्ट भी मिला था और क्रिसमस गिफ्ट भी. कुछ हैयेर बैंड, कुछ क्लिप्स और टॉफी और चोकलेट भी मिले.वो मेरी परफेक्ट ट्रीट थी.
अब में क्लास 6th में आ चुकी थी. क्लास का पहला दिन था और स्कूल एसेम्बली बहुत बड़े युकिलिप्ट्स पेड़ के नीचे शुरू हो रही थी और क्लास 6th का स्वागत हो रहा था और मैं कम लम्बी होने के कारण लाइन में सबसे आगे खड़ी थी और साथ ही साथ वहीँ हमारी ऐटन्डेंस भी हो रही थी, तभी एक लम्बी-सी टीचर वहां आयीं और उन्होंने मुझे पुचकार कर के कहा, बेटा आपकी एसेम्बली वहां हो रही है, आप वहां जाइये... वो मुझसे बहुत प्यार से बोलीं जा रहीं थीं. और मैं धीरे-धीरे परेशान भी हो रही थीं कि वे मुझे वापस क्यों भेज रहीं हैं, क्योंकि उनका इशारा मुझे वापस प्राइमरी सेक्शन में भेजने का था और हो सकता है. कि वो ये भी सोच रहीं हों कि मैं गलती से इस जगह आ गयी, फिर काफी छानबीन के बाद पता चला कि असली में मेरा प्रमोशन क्लास 6th में हुआ है और इस प्रकार उन्होंने इस बात के पुष्टि होने के बाद मुझे अपनी गोद में ही उठा लिया और आज भी मैं उन प्यारी और मृदुभाषी टीचर को भूल ही नहीं सकती, वो कोई और नहीं, वो थी हम सबकी प्यारी मिस सुचिता शेखर, जो बाद में जाकर क्लास 9th A में हमारी क्लास टीचर भी बन गयीं, जिन्हें एक बार मैंने स्कूल में आधी नींद में 'मम्मी' भी कह दिया था.
------आगे कल-------------