Tuesday, February 5, 2013

बेसूरमा हो गयी थी वो .....


कहानी, किस्सागो सुनाने की मैं इतनी अभ्यस्त नहीं, फिर भी एक कहानी सुनाने का मन कर रहा है। 


बेसूरमा हो गयी थी वो .....


कई साल पहले सूरमा ने बोर्ड की परीक्षा दी थी और परिणाम का इंतज़ार कर रही थी। उसे पता था कि वो पास भी हो जाएगी और अच्छे अंकों से, पर थोड़ी डरी हुई भी थी कि पता नहीं स्थिर का क्या हाल होगा। छोटी-सी उम्र में उसे अपने से ज्यादा उसका ख्याल था। दोनों ही बड़े नामी-गिरामी स्कूल में पढ़ते थे। सूरमा को अपना तो पता था, पर स्थिर की पढाई की हालत की कोई खबर नहीं। ये जरूर देखा था, कि वो अपने दोस्तों के साथ नोट्स की अदला-बदली करता रहता था। उसके कई दोस्त आते थे, कभी कोई तो कभी कोई किसी न नाम उसने मेढक रखा तो किसी का नाम मुस्कान। सब कभी आँगन में बैठ जाते तो कभी छत पर चुहलबाज़ियाँ करते। सूरमा को ये सब अच्छा लगता था, कहीं लड़कपन में उसे अपने बढ़ने का बोध होता था। शीशे के सामने बालों के साथ खेलना उसे बेहद पसंद था। वो भी अपने आँगन में चारपाई लगा के बैठ जाती और केक्टस के गुलाबी फूलों से खिलवाड़ करती। कभी मिटटी को खोदती तो कभी पानी डालने के बहाने ही बाहर जाकर जूतों के निशान ताकती रहती। रिजल्ट के दिन नजदीक थे और उसकी उमंगों के भी। उसे एक अकल्पनीय राह की तलाश थी जिसके सपने वो सालों से देखती आ रही थी। आख़िरकार वो दिन भी आ गया जिसका उन सबको इंतज़ार था रिजल्ट आ गया और 'सूरमा और स्थिर' अच्छे अंकों से पास हो गए। सूरमा चाहती थी कि स्थिर को मुबारकबाद दे पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई , इसलिए उसने गेट के सामने ही केक्टस के फूल दाल दिए।
नए स्कूल में दाखिले की मारामारी शुरू हो गयी। सूरमा का दाखिला आख़िरकार शहर से दूर एक वीरान-सी जगह में हो गया। बहुत खुश हो गयी सूरमा कि नए दोस्तों का साथ मिलेगा और नयी बातें होंगी। दोस्त बनाने में वो काफी पीछे थी पर दिल के किसी कोने में कहीं उसने किसी को एक ख़ास दोस्त का दर्ज़ा दे रखा था। ये बात अलग थी की कभी उससे कोई खास बात नहीं की थी, पर सोचती जरूर थी कि कभी वो भी उसी स्कूल में आएगा। एडमिशन के सारे कलाप पूरे हो चुके थे और नए सफ़र की ओर बढ़ने की बारी थी, उसे लगा की स्थिर साथ चलेगा पर उसने तो बिना बताये ही अपनी एक नयी राह चुन ली। बहुत दिल टूटा सूरमा का, लगा कि साथ चलने के सारे सपने टूट गए, मिटटी में मिल गए, बिखर गयी वो। अभी तो दिल कांच का ही था, थोडा-सा क्रैक आ गया उस पर। उन टूटे कांचों में भी 'हीर' सी बनी वो नादान अपना ही अक्स देख रही थी, उसे क्या खबर थी की इसका मतलब क्या निकलेगा। अभी तो बातों का, या यूँ कहें की नज़रों से रूबरू होने का सिलसिला शुरू भी नहीं हुआ था कि राह ही अलग हो गयी। अब बेमन से ही स्कूल जाने लगी थी सूरमा, कुछ ख़ास मन नहीं लग रहा था उसका वहां क्योंकि जिसके साथ कदम-दर-कदम जाने की सोची थी, वो तो पीठ पीछे न जाने किसी और ही रास्ते जा चुका था, नहीं दिखने के लिए। अचानक एक दिन उसने एक ख़त भेजा अपने घर पर, जहाँ उसने अपनी कुशलवाद भेजी थी और अपने नए कार्यकलापों का वर्णन किया था, उसना बताया कि वो जब आएगा तो 'खलनायक' बन के धूम मचा देगा। थोड़ी तस्सली हुई उसे क्योंकि उसने सभी का हाल पूछा था कहीं चिट्ठी के किसी कोने में उसका भी, उसे लगा कि वो भी कहीं एक्नोलेज हुई है।
एक दिन केमिस्ट्री की क्लास कर वो बाहर ही निकल ही रही थी, कि ये साहब अपने दोस्तों के साथ टोली बना के घूमते दिखे। आज तो लगा कि जैसे बगीचे के सारे फूल खिल गयें हैं और उसके चेहरे पर भी एक प्यारी-सी मुस्कान आ गयी है। अब सूरमा को हर रोज स्कूल जाना अच्छा लग रहा था और अब तो अपनी प्यारी-सी छोटी चोटी में वो लेस भी बांधने लग गयी थी, जिससे लेस की चमक सीधे उसके चेहरे पर पड़े और और उसका चेहरा भी चमकने लगे। पता नहीं कब दिन गुजर गए और स्थिर भी रफूचक्कर हो गया। चेहरा सुजा के सूरमा स्कूल बस में बैठी और और अनमने ढंग से क्लास में घुस गयी, उसने कभी किसी को इन अधूरी चाहतों का किस्सा नहीं बताया न ही शेयर किया। लगा कि जब कहानी बन जाएगी तो फ़साना सुनाई देगा। अब सूरमा लिखने लगी थी, तारों से बातें करने लगी थी, पन्नों को अपनी दास्ताँ सुना के खुद को तसल्ली दे देती। डूब गयी थी किसी कोने में वो उस मीठे अहसास की डुबकियां लगा के।

दशहरे के मेले में कई दोस्त फिर से जुट गए और सूरमा भी सब के साथ हो ली। अचानक स्थिर ने एक अनाउंसमेंट करवा दी की एकं लड़की इस भीड़ में खो गयी है, जिसका नाम सूरमा है ,जिसने सफ़ेद रंग की स्कर्ट और लाल रंग का टॉप पहना हुआ है, जिसे इसके बारे में पता चले तो कृपया बॉक्स में आकर सूचित कर दे। सूरमा को ख्याल आया कि उसने ही तो वो ड्रेस पहनी है, गुस्सा होने के बदले वो तो ख़ुशी के मारे झूमने लगी कि चलो आखिरकार उसके होने का अहसास तो है उसे। किसी भी तरह वो अपने वजूद का एहसास दिलाने के लिए बेताब थी। पढाई का तो पता नहीं, पर यौवन के सालों में सूरमा को लगने लगा कि वो बदरंग होने लगी थी, उसका चेहरा मुरझाया रहता था, उसके दोस्त भी पूछते थे कि वो क्यों चुप-सी मुरझाई, सकुचाई रहती है, पर उसके पास कोई जवाब नहीं थे, लोगों के सवालों के। कभी खुश हो जाती दोस्तों के किसी हंसी-ठठाकों के बीच अन्यथा लाजवंती की तरह सर झुकाए रहती।

साल ख़तम होने को था और सूरमा का संयम उसका मौन चरम पर था। उसने सोच लिया था इस बार वह स्थिर को बता के रहेगी कि वो उसे बचपन से ही बेहद पसंद करती है। जाड़े की छुट्टियां शुरू होने ही वाली थी और स्थिर भी घर आने वाला था। सूरमा का प्रोग्राम सारा सेट था इस बार पीछे नहीं हटने वाली वाली थी वो। नए साल के पिकनिक के लिए दोनों दोस्तों से साथ बाहर घूमने के लिए गए और कॉफ़ी-शॉप में कॉफ़ी आर्डर की थी, अचानक एक लड़की वहां आकर सबके बीच बैठ गयी, उसका नाम था शीतल। बेहद ही बिंदास, हंसमुख पर सूरमा की अपेक्षा कमतर सुन्दर और सभ्य। स्कूल के किस्से, बचपन की नादानियों के मांझे कभी कोई उडाता तो कभी कोई और काट डालता। शाम हो गयी और सभी बछड़ों की तरह अपनी माँ के आँचल में वापस जाने की तैयारी करने लगे। सूरमा और स्थिर को तो साथ ही आना था क्योंकि दोनों पास ही रहते थे और सूरमा को स्थिर के नाम पर ही बाहर जाने की इजाजत मिली थी। घर थोड़ी-ही दूरी पर था, और स्थिर ने सूरमा का हाथ थाम लिया और बड़े ही भरोसे के साथ एक बात कहने की हिम्मत जुटाई। सहमी, घबरायी और बेबस सूरमा ने बस अपनी सांसें संभाल रखी थी, उस ख़ास बात को सुनने के लिए। स्थिर ने कहा वो शीतल है, मैं उसे बहुत पसंद करता हूँ और उसी के साथ स्कूल में पढता हूँ। फक्क पढ गया चेहरा सूरमा का, उसकी आँखों में बसा स्थिर का चेहरा स्थिर ने पढ़ गया और सुन्न हो गया वो भी। बेसूरमा हो गयी वो और भाग के घर में घुस गयी सूरमा और पापा के सीने में चिपटकर फफकने लगी, ' पापा, मैं हार गयी, हार गयी, मेरा नाम ही गलत साबित हो गया, मेरी आँखों से ही कोई और सूरमा चुरा ले गया और कुछ न कर सकी मैं। बहुत देर कर दी थी सूरमा ने बताने में किसी को अपना हाल, पर समझ गए थे पापा, बड़ी होने लगी है उनकी बेटी, भरोसा टूटने पर संभल ही जाएगी धीरे-धीरे ......
सच में खलनायकी कर गया स्थिर, अब कोई सूरमा किसी को दिल नहीं दे पायेगी, स्थिर हो जाएगी अपने सपनों में , खो भी नहीं पायेगी जूतें के निशान ढूँढने और तारों के बीच अफसाने बनाने मे ...
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बेसूरमा हो गयी थी वो .....

कहानी, किस्सागो सुनाने की मैं  इतनी अभ्यस्त नहीं, फिर भी एक कहानी सुनाने का मन कर रहा है। 

बेसूरमा हो गयी थी वो .....

कई साल पहले सूरमा ने बोर्ड की परीक्षा दी थी और परिणाम का इंतज़ार कर रही थी। उसे पता था कि वो पास भी हो जाएगी और अच्छे अंकों से, पर थोड़ी डरी हुई भी थी कि पता नहीं स्थिर का क्या हाल होगा। छोटी-सी उम्र में उसे अपने से ज्यादा उसका ख्याल था। दोनों ही बड़े नामी-गिरामी स्कूल में पढ़ते थे। सूरमा को अपना तो पता था, पर स्थिर की पढाई की हालत की कोई खबर नहीं। ये जरूर देखा था, कि  वो अपने दोस्तों के साथ नोट्स की अदला-बदली करता रहता था। उसके कई दोस्त आते थे, कभी कोई तो कभी कोई किसी न नाम उसने मेढक रखा तो किसी का नाम मुस्कान। सब कभी आँगन में बैठ जाते तो कभी छत पर चुहलबाज़ियाँ करते। सूरमा को ये सब अच्छा लगता था, कहीं लड़कपन में उसे अपने बढ़ने का बोध होता था। शीशे के सामने  बालों के साथ खेलना उसे बेहद पसंद था। वो भी अपने आँगन में चारपाई लगा के बैठ जाती और केक्टस के गुलाबी फूलों से खिलवाड़ करती। कभी मिटटी को खोदती तो कभी पानी डालने के बहाने ही बाहर जाकर जूतों के निशान ताकती रहती। रिजल्ट के दिन नजदीक थे और उसकी उमंगों के भी। उसे एक अकल्पनीय राह की तलाश थी जिसके सपने वो सालों से देखती आ रही थी। आख़िरकार वो दिन भी आ गया जिसका उन सबको इंतज़ार था रिजल्ट आ गया और 'सूरमा और स्थिर'  अच्छे अंकों से पास हो गए। सूरमा चाहती थी कि  स्थिर को मुबारकबाद दे  पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई , इसलिए उसने गेट के सामने ही केक्टस के फूल दाल दिए।
 नए स्कूल में दाखिले की मारामारी शुरू हो गयी। सूरमा का दाखिला आख़िरकार शहर से दूर एक वीरान-सी जगह में हो गया। बहुत खुश हो गयी सूरमा कि नए दोस्तों का साथ मिलेगा और नयी बातें होंगी। दोस्त बनाने में वो काफी पीछे थी पर दिल के किसी कोने में कहीं उसने किसी को एक ख़ास दोस्त का दर्ज़ा दे रखा था। ये बात अलग थी की कभी उससे कोई खास बात नहीं की थी, पर सोचती  जरूर थी कि कभी वो भी उसी स्कूल में आएगा। एडमिशन के सारे कलाप पूरे हो चुके थे और नए सफ़र की ओर बढ़ने की बारी थी, उसे लगा की स्थिर साथ चलेगा पर उसने तो बिना बताये ही अपनी एक नयी राह चुन ली। बहुत दिल टूटा सूरमा का,  लगा कि साथ चलने के सारे सपने टूट गए, मिटटी में मिल गए, बिखर गयी वो। अभी तो दिल कांच का ही था, थोडा-सा क्रैक आ गया उस पर।  उन टूटे कांचों में भी 'हीर'   सी बनी वो नादान अपना ही अक्स देख रही थी, उसे क्या खबर थी की इसका मतलब क्या निकलेगा। अभी तो बातों का, या यूँ कहें की नज़रों से रूबरू होने का सिलसिला शुरू भी नहीं हुआ था कि राह ही अलग हो गयी। अब बेमन से ही  स्कूल जाने लगी थी  सूरमा, कुछ ख़ास मन नहीं लग रहा था उसका वहां क्योंकि जिसके साथ कदम-दर-कदम जाने की सोची थी, वो तो पीठ पीछे न जाने किसी और ही रास्ते जा चुका था, नहीं दिखने के लिए। अचानक एक दिन उसने एक ख़त भेजा अपने घर पर, जहाँ उसने अपनी कुशलवाद भेजी थी और अपने  नए कार्यकलापों का वर्णन किया था, उसना बताया कि वो जब आएगा तो 'खलनायक' बन के धूम मचा देगा। थोड़ी तस्सली हुई उसे क्योंकि उसने सभी का हाल पूछा था कहीं चिट्ठी के किसी कोने में उसका भी, उसे लगा कि वो भी कहीं एक्नोलेज हुई है।
    एक दिन  केमिस्ट्री की क्लास कर वो बाहर ही निकल ही रही थी, कि ये साहब अपने दोस्तों के साथ टोली बना के घूमते दिखे। आज तो लगा कि जैसे बगीचे के सारे फूल खिल गयें हैं और उसके चेहरे पर भी एक प्यारी-सी मुस्कान आ गयी है। अब सूरमा को हर रोज स्कूल जाना अच्छा  लग रहा था और अब तो अपनी प्यारी-सी छोटी चोटी में वो लेस भी बांधने लग गयी थी, जिससे लेस की चमक सीधे उसके चेहरे पर पड़े और और उसका चेहरा भी चमकने लगे।  पता नहीं कब दिन गुजर गए और स्थिर भी रफूचक्कर हो गया।  चेहरा सुजा के सूरमा स्कूल बस में बैठी और और अनमने ढंग से क्लास में घुस गयी, उसने कभी किसी को इन अधूरी चाहतों का किस्सा नहीं बताया न ही शेयर किया। लगा कि जब कहानी बन जाएगी तो फ़साना सुनाई देगा। अब सूरमा लिखने लगी थी, तारों से बातें करने लगी थी, पन्नों को अपनी दास्ताँ सुना के खुद को तसल्ली दे देती। डूब गयी थी किसी कोने में वो उस मीठे अहसास की डुबकियां लगा के।

दशहरे के मेले में कई दोस्त फिर से जुट गए और सूरमा भी सब के साथ हो ली। अचानक स्थिर ने एक अनाउंसमेंट करवा दी की एकं लड़की इस भीड़ में खो गयी है, जिसका नाम सूरमा है ,जिसने सफ़ेद रंग की स्कर्ट और लाल रंग का टॉप पहना हुआ है, जिसे इसके बारे में पता चले तो कृपया बॉक्स में आकर सूचित कर दे। सूरमा को ख्याल आया कि उसने ही तो वो ड्रेस पहनी है, गुस्सा होने के बदले वो तो ख़ुशी के मारे झूमने लगी कि चलो आखिरकार उसके होने का अहसास तो है उसे।  किसी भी तरह वो अपने वजूद का एहसास दिलाने के लिए बेताब थी। पढाई का तो पता नहीं, पर यौवन के सालों में सूरमा को लगने लगा कि वो बदरंग होने लगी थी, उसका चेहरा मुरझाया रहता था, उसके दोस्त भी पूछते थे कि वो क्यों चुप-सी मुरझाई, सकुचाई रहती है, पर उसके पास कोई जवाब नहीं थे, लोगों के सवालों के। कभी खुश हो जाती दोस्तों के किसी हंसी-ठठाकों के बीच अन्यथा लाजवंती की तरह सर झुकाए रहती।  

साल ख़तम होने को था और सूरमा का संयम उसका मौन चरम पर था। उसने सोच लिया था इस बार वह स्थिर को बता के रहेगी कि वो उसे बचपन से ही बेहद पसंद करती है। जाड़े की छुट्टियां शुरू होने ही वाली थी और स्थिर भी घर आने वाला था। सूरमा का प्रोग्राम सारा सेट था इस बार पीछे नहीं हटने वाली वाली थी वो। नए साल के पिकनिक के लिए दोनों दोस्तों से साथ बाहर घूमने के लिए गए और कॉफ़ी-शॉप में कॉफ़ी आर्डर की थी, अचानक एक लड़की वहां आकर सबके बीच बैठ गयी, उसका नाम था शीतल। बेहद ही बिंदास, हंसमुख पर सूरमा की अपेक्षा कमतर सुन्दर और सभ्य। स्कूल के किस्से, बचपन की नादानियों के मांझे कभी कोई उडाता तो कभी कोई और काट डालता। शाम हो गयी और सभी बछड़ों की तरह अपनी माँ के आँचल में वापस जाने की तैयारी करने लगे। सूरमा और स्थिर को तो साथ ही आना था क्योंकि दोनों पास ही रहते थे और सूरमा को स्थिर के नाम पर ही बाहर जाने की इजाजत मिली थी। घर थोड़ी-ही दूरी पर था, और स्थिर ने सूरमा का हाथ थाम लिया और बड़े ही भरोसे के साथ एक बात कहने की हिम्मत जुटाई। सहमी, घबरायी और बेबस सूरमा ने बस अपनी सांसें संभाल रखी थी, उस ख़ास बात को सुनने  के लिए। स्थिर ने कहा वो शीतल है, मैं उसे बहुत पसंद करता हूँ और उसी के साथ स्कूल में पढता हूँ। फक्क पढ गया चेहरा सूरमा का, उसकी आँखों में बसा स्थिर का चेहरा स्थिर ने पढ़ गया और सुन्न हो गया वो भी। बेसूरमा हो गयी वो और भाग के घर में घुस गयी सूरमा  और पापा के सीने में चिपटकर फफकने लगी, ' पापा, मैं हार गयी,  हार गयी, मेरा नाम ही गलत साबित हो गया, मेरी आँखों से ही कोई और सूरमा चुरा ले गया और कुछ न कर सकी मैं।  बहुत देर कर दी थी  सूरमा ने बताने में किसी को अपना हाल, पर समझ गए थे पापा, बड़ी होने लगी है उनकी बेटी, भरोसा टूटने पर संभल ही जाएगी धीरे-धीरे ......
 सच में खलनायकी कर गया स्थिर, अब कोई सूरमा किसी को  दिल नहीं दे  पायेगी, स्थिर हो जाएगी अपने  सपनों में , खो भी नहीं पायेगी जूतें के निशान ढूँढने और तारों  के बीच अफसाने बनाने मे ...