*मैं तो आज़ाद हूँ *
मैं आज़ाद हूँ धर्म की रूढ़िवादिता से,
मैं आज़ाद हूँ इन रीतियों से, रिवाजों से
मेरे मन का पंछी उड़ता है,
ऊँचे ख्वाबों के गगन में,
लहराता है अपने सपने,
खुश होता है छोटी-सी मुस्कान पा के,
बताता है अपनी चाहतों की मंजिल,
उनपे चढ़ता है, फिसलता है, उतरता है,
और फिर मंजिल हासिल करता है,
अपनी मुट्ठी में बंद कर के,
आज़ाद हूँ मैं वो सब पाने को,
जो सब मेरा है, मेरे दिल का है...
तुम भी अपनी आज़ादी पहचानो,
उड़ो, घूमो, कहकहे लगाओ,
न करो गुलामी किसी की, न ही किसी सेठ की, न बॉस की
सच कहो, सच सुनो,
आज़ाद रहो हर बंधन से,
न होगे निराश, न ही कोई आस,
रखो किसी से कोई ख़ास,
उड़ पाओगे, अपने घोंसले से जुड़ पाओगे,
हर बंधन से,
सुनो, सीखो और अमल करो,
इंसानियत से, पुरुषार्थ से,
जीवन सफल बनाओ,
फिर आज़ाद हो हरि की शरण में जाओ ।
मैं आज़ाद हूँ धर्म की रूढ़िवादिता से,
मैं आज़ाद हूँ इन रीतियों से, रिवाजों से
मेरे मन का पंछी उड़ता है,
ऊँचे ख्वाबों के गगन में,
लहराता है अपने सपने,
खुश होता है छोटी-सी मुस्कान पा के,
बताता है अपनी चाहतों की मंजिल,
उनपे चढ़ता है, फिसलता है, उतरता है,
और फिर मंजिल हासिल करता है,
अपनी मुट्ठी में बंद कर के,
आज़ाद हूँ मैं वो सब पाने को,
जो सब मेरा है, मेरे दिल का है...
तुम भी अपनी आज़ादी पहचानो,
उड़ो, घूमो, कहकहे लगाओ,
न करो गुलामी किसी की, न ही किसी सेठ की, न बॉस की
सच कहो, सच सुनो,
आज़ाद रहो हर बंधन से,
न होगे निराश, न ही कोई आस,
रखो किसी से कोई ख़ास,
उड़ पाओगे, अपने घोंसले से जुड़ पाओगे,
हर बंधन से,
सुनो, सीखो और अमल करो,
इंसानियत से, पुरुषार्थ से,
जीवन सफल बनाओ,
फिर आज़ाद हो हरि की शरण में जाओ ।