३१-१-१२
कुछ कच्चे पल
आ रहा है कुछ याद,
इन खुली-बंद आँखों में,
यादों के झुरमुट से,
गुनगुनी हलकी सरसराहट,
ठंडी हवाओं के झोकों की तरह
आज भी सुनाई देती है,
तुम्हारी सुनहरी आहट .....
कुछ खों-खों करके गाते हुए तुम्हारे वे नगमे,
पास आने की इतल्ला दे देते थे,
फाटक पे साइकिल की घंटी की सरगम से
पहचान जाती थी मैं उस समय की धड़कन..
कभी शाम को बालकोनी में बैठ,
नए गानों को ऊँचे सुरों में सुनने की कवायद,
और कभी हलके-हलके तबले की थाप में
उमड़ते, घनघनाते लफ्जों की तपिश,
मिजाज हरा कर देती थी, कसम से....
तुम्हारी खामोशी और मेरा अनजान बने रहना,
एक रास्ते में चल, रास्ता जुदा करना,
आज बड़ा ही अफसोसनाक लगता है,
पता था जबकि, सुर-सरगम नस-नस
में बैठी थी हमारे-तुम्हारे
तुम्हारे पते में, मैं अब नहीं जाती,
दूर गुमनाम किसी शहर की चिल्ल-पों में बस चुकी हूँ मैं,
न रखती हूँ तमन्ना, तुमसे कोई दिल का रिश्ता भी रखूँ,
मेरी साँसों में अब कोई और बस चुका है,
पर मुद्दतों बाद जब भी होता है जिक्र तुम्हारा,
घबराहट से भर जाता है, अब भी मेरा छोटा-सा ये दिल,
कि कहीं कोई चोरी पकड़ी तो नहीं गयी,
चुप-चाप सिमट जाती हूँ अपनी साँसें रोक के,
मुझे पता है, ये लुका-छिपी का खेल
कभी ख़त्म होने वाला नहीं,
न तुम बोलोगे मुझसे और
न मैं कभी आवाज़ दूँगी,
अपनी अनबुझ कहानी को
फिर भी मैं नया नाम दूँगी,
ये पहले प्यार की खनक
सुन सकते हैं हम सभी इन कानों से,
जीवन के ये कुछ कच्चे पल थे,
जो जल्द ही टूट गए,
किसी नयी उभरती कहानी के ये पन्ने रूठ गए,
छन-छन के आते हैं, इन पलों से
यादों की सुनहरी-मीठी टीस,
खो जातें हैं हम सभी,
उस पहले प्यार के बीच...