Thursday, July 26, 2012

मौत

मौत

मौत तुम एक छलावा हो,
सिर्फ कुछ सेकंड में जीवन ले जाती हो
जिंदगी जीने के लिए जीवट चाहिए,
तुम में वो माद्दा ही नहीं

तुम कर जाती हो सबको स्तब्ध,
इंसान से जुड़े लोगों को कर निशब्द,
मृत शरीर को देख रोते-बिलबिलाते कुछ लोग,
अपने पीछे छोड़े जाती हो एक मनहूस सी शांति

 क्या सोचती हो, पता है कितने कर्म करने पड़ते हैं,
 चलते रहना होता है जीने के लिए
बिना थके-हारे साँसों को समेटे,
खुद के लिए, कुछ अपनों के लिए
अपने वजूद को बचाए रखना होता है।

इस भागमभाग में कई चीज़ें अपनी बनानी होती हैं
तिनका-तिनका जोड़, जिंदगी संवारनी होती है
तुम्हारा क्या है, बिना कोई अलार्म दिए आती हो
झट से सब तबाह किये जाती हो।

गर आदमी साथ में अपने कुछ ऊपर ले जा नहीं सकता
तो एक मेमो दुनियावालों के लिए पास कर दो
खाओ, पियो, और उडाओ, ये बना दो जिंदगी जीने के उसूल
हर आदमी यहाँ बचाने के चक्कर में हर रोज मरता है
कोई थोडा कम तो कोई थोडा ज्यादा

शरीर ही साथ ले जा सकती हो तुम
यादें, आभास, आहट ये शब्द यहीं रहते हैं
हर पल सीने में दफ़न उस चेहरे को तुम
कभी मिटा नहीं सकती,
तुम सिर्फ एक मौत हो, मौत   
ले ही जा सकती हो, छीन लेती हो
वापस नहीं ला सकती, सिर्फ उजाड़ सकती हो
नफरत है मुझे तुमसे, तुम जैसी हर उस चीज़ से
जो किसी का जीवन ले लेती है,
है हिम्मत तो कभी जिंदगी के साथ बैठो
हंसो, खेलो, खिलखिलाओ, और बिना किसी के प्राण ले वापस चले जाओ ।

Friday, July 20, 2012

ऐसा क्यों कर रहे हो तुम?

ऐसा  क्यों कर रहे हो तुम?

तुम्हें पता है कि मैं हर रोज बच्चे को स्कूल छोड़ के आती हूँ,
पाईप निकालती हूँ,
और दिल्ली जैसे शहर में,
जहाँ पानी की मुश्किल है
झमाझम बरसा देती हूँ पानी
उन हरे पौधों में, जो मैंने बरसों पहले लगाये थे।

हर रोज बे-नागा मैं फिल्टर चलाती हूँ,
पर पानी बर्बाद नहीं करती,
बचा के रखती हूँ उसके बर्बाद हुए पानी को,
जमा करती हूँ कि कहीं इसकी फिर से जरूरत पड़ जाए
मैं तुम्हारे दिए हुए हवा, पानी जैसे उपहारों की कीमत पहचानती हूँ ।


प्रकृति के उपहारों का बहुत क़र्ज़ है हम पर,
हम सांस भी तुम्हारे ही कारण ले पाते हैं प्रभु,
तुम बिना किसी विभाजन के सबको
बराबर बांटते हो अपनी नेमतें,
और तब ही हम जी पातें हैं यहाँ ।


बड़ी मुश्किल में हूँ मैं
जब अल सुबह देखती हूँ कि चिड़िया, तोते, कौवे
अपनी छोटी-सी चोंच से सारा पानी गटकते हैं
बालकोनी में चलते नल के नीचे
नहाते हैं कुछ बूँदों की फुहारों में,  
पर दिन चढ़ते ये हवा में उड़ते पंछी
चोंच खोले तुम्हारे ठंडे झोकों के लिए तरसते हैं
मैं भी दिन भर बाहर जा उन बर्तनों में ठंडा पानी नहीं भर सकती।


प्लीज, इन्साफ करो तो थोडा ढंग का,
हम सब तो पंखे कूलर, और एसी के अन्दर
रहते हैं, अपने जीवन की गाड़ी खींचते हैं,
पर इन बेजुबानों का मर्म तुम तो समझते ही नहीं,
ना ही बरसात कर रहे हो, न ही ठंडे हवा के झोंके बहाते हो ।


मुझे पता है, नाइंसाफी तुम्हारे साथ भी हो रही है,
तुम्हारा वातावरण हम ही बर्बाद कर रहे हैं,
 पर देखो न, प्रतिस्पर्धा तो बढती रहेगी
कुछ न कुछ तो बर्बाद होता ही जायेगा,
पर तुम्हारी झोली तो बहुत-ही बड़ी है,
कुछ भी खत्म नहीं होता वहां
हर आदमी आगे बढेगा, आसमान छूएगा
तुम फिर आसमान भी ऊँचा कर लोगे क्या?


मेरे बच्चे के साथ मैं हूँ,
वो जो कहेगा मैं लाने की कोशिश करूंगी
पर छोटी बछिया, बिल्ली के बच्चे, दौड़ते पिल्ले 
अपनी माताओं से कैसे मांगेंगे जल  
इतनी गर्मी में तो, कई अपने प्राण त्यागेंगे
थोडा रहम, थोड़ी गुज़ारिश मेरे दाता
जुलाई का महीना जा रहा,
इतना करम करो, इन मेघों को कुछ दिन खुलके बरसने दो,
नहीं तो आने वाले दिन और भारी होंगे, न पानी होगा न अनाज
फिर क्या तुम बहुत खुश होगे, सबको तिल-तिल तडपता देख,
सिर्फ हमारा ही नहीं, धरती मैया का भी ख्याल रखो
कहीं उसका सीना फट न जाये,
हम सब तो हो जायेंगे उसमें दफ़न,
फिर तुम बरसना सीना फाड़ के भी,
कोई नहीं होगा दुनिया में तब
जो तुम्हारे पानी में छप-छप करेगा,
न कोई कश्ती चलेगी, न दिल बाग़-बाग़ होगा,
बरसाओ प्रभु अब तो जम के पानी,
नहीं तो हो जायेगा सब सून,
कुछ दिन तो बरसे ये बादल
तब नाचे मन का मयूर ।।