कुछ ख़ास दोस्तों के नाम: फ्लैशबैक
दिन ढलता है और निकलते है हम अपने छत्ते से,
पूरे दिन की घटना और बहुत सारी गपशप,
पल्लू में बांध लातें हैं
औ' सर पर पांव रख भाग के आते हैं पार्क में,
और फिर खोल देते हैं जीवन का पिटारा।
अपनी कहानी, अपनी जुबानी रोज कहतें हैं,
रोते हैं, हँसते हैं, गपियाते हैं
अपनी कहानी सुनांने को रोज तरसते हैं
बच्चों की आड़ में,
निकल पड़ते हैं हरदिन,
एक-दूसरे से मिलने के लिए,
गुदगुदाता-सा रिश्ता है हमारा,
नाम है इसका दोस्ती।
रेशम का नाजुक, और बसंत-सा रंगीन,
मेरा, तुम्हारा, हम सबका मिजाज़,
हरा हो जाता है एक-दूसरे के खिले चेहरे देख कर,
जैसे हवा के झोंके ने छू लिया हो अधखुली
गुलाब की कलियों को,
इठलाते हुए अपने कहकहों के बीच,
गुम हो जाते हैं जैसे भोंरा छुपा हो कलियों के बीच।
कभी बेस्ट चीज़ों की बातों पे हंसना,
कभी कहना हां सुन, कभी अरे, तो
कभी चेहरे के तेज के हंसगुल्ले उड़ाना,
हमारी मिस ब्यूटीक्विन को निहारना,
सबब है हमारे साथ रहने का।
जा के सबके घरों में, घंटों चाय पे बिताना,
चुस्कियां लेके बातों के मजे लेना,
सालता है आज मुझको न होने पे ये,
सर्द मौसम ने चुरा ली है, हमारी मुस्कुराहटें
हमारी चुहलबाजियों पर बिछ गयी है कोहरे-सी परत,
स्वेटर के फंदों-से जुडें हैं हम इस जिंदगी में,
एक-एक खुले तो उधड़ जाएगा पूरा ताना-बाना,
हमारा घोंसला फिर चुका है निर्जन,
निकलते हैं फिर-से वापस अब पुराने अड्डे पे,
साथ हैं हम, तभी कुछ बात है,
वरना सबका अपना-अपना दाल-भात है,
ठंडे पड़े मौसम में मिलके लगाते हैं आग,
निकलते हैं घर से फिर, चल जल्दी से भाग,
याद आती है मुझको फिर वो सुहानी शाम,
जहाँ बहुत दिनों से मैं फ्लैशबैक पर हूँ ...
कुछ ख़ास दोस्तों के नाम ....