Friday, August 2, 2013

पिता

पिता

कब देखा था पहले तुम्हें, ये तो याद नहीं,
करीब चार साल की जरूर थी,
माँ से पहले देखा था तुम्हें ही, मैंने अपने पूरे होश-ओ-हवास में,
अमरूदी खुशबू से भरा वो थैला अभी भी याद है मुझे,
जिसमे भरकर कुछ कपड़े , उपहार तुम लाते थे मेरे लिए
साथ में इलाहाबादी अमरूदों से भरा एक बोरा,
लगता है मुझको अब भी कि पापा की खुशबू ऐसी ही होती है.
कुछ मीठी और कुछ भीनी, जो जीवन-सी जीभ में समायी हुई है.

 तुम्हारे हाथों के मोटे दो स्तंभों के बीच लगता था,
जैसे पालना यही है, और ये ही मेरा सिंहासन,
ओढ़ कर तुम्हारे उस तौलिये को,
माँ के आँचल का सार पाया है,
थोड़ा गुदगुदा, थोड़ा सख्त कड़े गुंथे आटे सा,
जहाँ मैं कभी खुद को महफ़ूज पाया है.

बचाते कभी मुझको,
खुली किताबों के बीच आती अकस्मात् नींदों के झोंखों से,
तो कभी गिरी हुई परफ्यूम की बोतल का जिम्मा अपने सर चुपचाप ले कर,
बिठाते मुझको कांधे अपने तब भी, जब लडकियाँ सकुचाने लगती हैं
बाप हो, भाई हो या दोस्त, सबसे जब खुद को छिपाने लगती है,
तब भी बनी रही मैं तुम्हारी एक छोटी-सी डलिया,
जो हमेशा माथे पर ही रहती थी.
न सरकती और कभी नीचे न आती,
ऊपर बैठ के ही बस घर-संसार सजती थी.

पिता से निकलती है एक पुत्री,
जो उस जैसी ही होती है, शब्द में भी
और कहीं कुछ गुणों में भी,
पाती है लाड, दुलार अपरिमित,
और साये में तेरे सिंचती है,
मुश्किल है एक पिता का
अपनी लड़की विदा करना,
जो पल में हो जाती है परायी,
क्या गुजरती है उस कोमल ह्रदय पर,
वो ही जाने जिसकी फटी बिवाई,

मेरे पिता तो बाद में मेरे पिता बने,
पहले बने वो मेरी माँ,
फिर भाई अंत में मेरी बहन,
हो 'पिता', पर ममता तो ओढ़े हो तुम
मेरे लिए,
छुपाते हो मुझे कभी किसी गर्म गुस्से,
और कभी शून्य संवेदनापूर्ण लोगों से
नहीं, मैं नहीं कह सकती कि पिताजी  सख्त होते हैं,
हमारे नए जीवन में वह ही हमारे तख़्त होते हैं,
जो देते हैं सहारा, आश्वासन और ढेर सारा प्यार जीवन का

 मोम-सा है अब भी तेरा प्यार,
जो रिश्ते में  जेठी आने से पहले ही गल जाता है अश्रु बनकर,
और बहा ले जाता है सारे ताप,संताप एक लहर में,
तेरे साये में अब भी वो ठंडक मिलती है,
जो होती है एक आइसक्रीम में,

पर मिठास तो तब ही आती है
जब एक अमरुद का टुकड़ा
तुम हरा नमक मिला के खिलाते हो, जाड़े की धूप में,
उगाउंगी इस साल अपने गमले में,
मैं एक अमरुद का पौधा,
जो तुम्हारी उस खुशबू की याद दिलाएगा, 
सुखाउंगी उस पर रखकर अपना तौलिया
और महक के कह दूँगी कि देखो, पापा घर में आये हैं.…