Sunday, March 17, 2013

holi.....

किन्ने गुलाल मोहे मारी, भिगोई मेरी साडी,
खड़ी हूँ मैं तो ब्रज की नारी
मारो गुलाल पिचकारी, सर ररर सारी कि आये मेरे अवध बिहारी
 
हाथ में अबीर लिए राधा जी बुलाये,
पास में कन्हय्या देखो अभी नहीं जायें,
देखे ये नगरी खड़ी सारी,
भर के पिचकारी,
माधव मेरे खड़े इतराए .....

चुपके-चुपके कान्हा इत-उत जाएँ,
खड़े ओटन पर मंद मुस्काएं,
मारी गुलेल चुप आरी,
मटकी फोड़ी हाँ री,
फिरूं जी मैं तो हारी  हारी  ....

भरे हुए थाल में, रंगों  को सजाकर,
निकली जो राधिका, देखे करुणाकर
मुरली बजाएं अति न्यारी,
बुलाएं वो अपनी दुलारी,
छिडके रंग वो तो सारे,
सर, रर ररर हाँ रे
ओं होली में खेले हमरे दुलारे ........     

1 comment:

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